
पुस्तक : भावावेग
लेखक : कुन्दन कुमार
मूल्य : 160 रूपये
बाईडिंग : पैपरबैक
पृष्ठ : 120 पेज
प्रकाशक : प्राची डिजिटल पब्लिकेशन
युवा कवि कुन्दन कुमार जी का सारगर्भित काब्य-संग्रह ‘भावावेग ‘ में संकलित मनहर कविताएं पठनीय एवं अनुकरणीय हैं। बेशक कुन्दन जी की कविताओं को समझने के लिए समझ चाहिए। तत्सम शब्दों से सुसज्जित आपकी भाषा उच्चस्तरीय एवं भाव उदात्तवादी है। इस काब्य – संग्रह में कुल 35 कविताये हैं। ‘उम्मीद’ नामक कविता में आप अपने आशावादी विचार को अभिब्यक्त करते हैं।
कवि कुन्दन की कविताओं में भावों का वेग है । राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का कथन है –
आपकी कविता ‘भावोन्मुक्त’ में उपदेशात्मक ज्ञान की वर्षा होती है –
दया भाव दिखलाओ कुछ, सिखलाओ कुछ हम जड़ लोगों को
हो विद्वान यदि विद्वता दिखाओ, झुठलाओ न यूँ कथनों को
* * * *
वो दक्ष नहीं होना हमको, जिसे होने में संकोच बढ़े
वो लक्ष्य नहीं ढोना हमको जिसमें भय का संताप उठे
ढाई आखर (‘प्रेम’) ही मनुष्य जीवन का धर्म है और कर्म है । प्रेम के बिना क्या जीना । ‘चित्तवेदना’ कविता की प्रत्येक पंक्तियाँ मर्मस्पर्शी हैं –
फेंक खंजर पुष्प का
अब कर वरण जो धर्म है ।
प्रेम का बस सार ही
मनुजीव का एक कर्म है ।
एक ऐसा काब्य – संग्रह जिसमें कल्पना की खुशबू है, बिम्ब का विधान है, प्रतीकों की छाया है और है फैंटेसी की धूप। नाम को चरितार्थ करते हुए इस काब्य – संग्रह में सचमुच भावों का आवेग है । ‘मेरे पिता’ नामक कविता में वातसल्य रस से ओत – प्रोत भावावेग है –
वर्षों से रात के सन्नाटों में
ढूंढ रहे थे मुझको वो मेरे पिता
* * * *
न जान कमर में, पग भी डगमग
बढ़े जा रहे फिर भी प्रतिपल
मशहूर पंजाबी कवि अवतार सिंह संधू उर्फ़ पाश ने लिखा है –
“/ सबसे खतरनाक होता है / सपनों का मर जाना /”
इसी भाव को कवि कुन्दन कुमार जी ने अपनी कविता ‘स्वप्नसमर’ में ब्यक्त किया है –
है अति रंग, है अति उमंग
कर जीवन का न स्वप्न दमन
* * * *
बज्र बना खुद को इतना
पर्वत का बुलंद सीना जितना
वाह ! मानवीकरण अलंकार से अलंकृत कविता ‘स्वर्ग धरा’ को पढ़कर तो तपोवन में मन- मयूर झूम उठा । हम स्वर्ग के लिए अपने मन को यत्र – तत्र – सर्वत्र भटकाते रहते हैं । लेकिन स्वर्ग तो धरा ही है –
क्या कमी है रह गयी, जो मिला मुझको नहीं
स्वर्ग जिसका नाम है, वो धरा तो है यहीं
पर्वतों के उस पार झांकती हुई लालिमा का मनोहारी चित्रण देखिए –
सफेद मोती सी बिखरी हुई ओंस की बुँदे
पर्वतों के उस पार झांकती भोर की लालिमा
इंद्रधनुषी फूलों की घाटियां, है ले रही अंगड़ाईयाँ
पत्थरों से खेलती उफनती नदी
है कर रही अटखेलियां
‘आकांक्षा’, ‘भोला ह्रदय’, ‘दर्द बहुत है’, ‘विभीषिका’, ‘छल’ और ‘शोक’ नामक कविताएं हिंदी साहित्य-जगत की कालजयी रचनाएँ हैं।
युवा कवि कुन्दन कुमार जी का इतना सारगर्भित काब्य – संग्रह “भावावेग” प्रकाशित हुआ है। इसके लिए बहुत – बहुत बधाईयां एवं साधुवाद। अहर्निश लेखनी चलाते रहिए। अभी तो यह शुरुवात है । मेरी शुभकामनायें आपके साथ है। शुक्रिया
सुनील चौरसिया ‘सावन’
प्रवक्ता, केंद्रीय विद्यालय, टेंगा वैली,
अरुणाचल प्रदेश
संपर्क : 9044974084
Buy this Book
Follow on WhatsApp : Subscribe to our official WhatsApp channel to receive alerts whenever new posts are published on AuthorsWiki. Please note, we only share content on WhatsApp channel that is highly relevant and beneficial to authors, ensuring you stay updated with valuable insights, tips, and resources. Follow on WhatsApp
Copyright Notice © Re-publishing of this exclusive post, including but not limited to articles, author interviews, book reviews, and exclusive news published on AuthorsWiki.com, in whole or in part, on any social media platform, newspaper, literary magazine, news website, or blog, is strictly prohibited without prior written permission from AuthorsWiki. This content has been created exclusively for AuthorsWiki by our editorial team or the writer of the article and is protected under applicable copyright laws.