
पुस्तक समीक्षा “भावावेग” संवेदनाओं के स्वर हैं “भावावेग”
पुस्तक : भावावेग
लेखक : कुन्दन कुमार
मूल्य : 160 रूपये
बाईडिंग : पैपरबैक
पृष्ठ : 120 पेज
प्रकाशक : प्राची डिजिटल पब्लिकेशन
कुन्दन कुमार का नाम साहित्यजगत के लिए अभी अनजाना है। हाल ही में इनका काव्य संग्रह “भावावेग” प्रकाशित हुआ है। जिसमें कवि की उदात्त भावनाओं के स्वर हैं।
मेरे पास समीक्षा की कतार में बहुत सारी कृतियाँ लम्बित थीं। अतः इस कृति की समीक्षा में विलम्ब हो गया। मैंने जैसे ही “भावावेग” को संगोपांग पढ़ा तो मेरी अंगुलियाँ कम्प्यूटर के की-बोर्ड पर शब्द उगलने लगीं।
एक सौ बीस पृष्ठ के काव्य संग्रह “भावावेग” में 35 विविधवर्णी रचनाएँ हैं। जिसका मूल्य 160 रुपये मात्र है। जिसे “प्राची डिजिटल पब्लिकेशन” मेरठ, उत्तर प्रदेश से प्रकाशित किया गया है।
इस कृति की भूमिका साहित्य सुधा के सम्पादक डॉ. अनिल चड्ढा ने लिखी है। जिसमें उन्होंने लिखा है-
“…सृजन किसी भी नियम या विधा के बन्धन में नहीं है। “कुछ भी कहो, कैसे भी कहो, साहित्य तो साहित्य ही है” आप अपनी संवेदनाओं को पृष्ठ पर किसी भी रूप में उकेरेंगे तो वह साहित्य बन जायेगा। और फिर इसे कोई लय देंगे तो वह कविता का रूप धारण कर लेगा।“
मेरे विचार से साहित्य की दो विधाएँ हैं गद्य और पद्य जो साहित्यकार की देन होती हैं और वह समाज को दिशा प्रदान करती हैं, जीने का मकसद बताती हैं। साहित्यकारों ने अपने साहित्य के माध्यम से समाज को कुछ न कुछ प्रेरणा देने का प्रयास किया है। “भावावेश” भी कविता का एक ऐसा ही प्रयोग है। जो कुन्दन कुमार की कलम से निकला है। इस काव्य संग्रह का शीर्षक ही ऐसा है जो पाठकों को इसे पढ़ने को विवश कर देगा।
कवि कुन्दन कुमार ने “दो शब्द” के अन्तर्गत अपने आत्मकथ्य में लिखा है-
“मैं हमेशा से ही आन्तरिक भावनाओं को प्राथमिकता देता आया हूँ, क्योंकि भावनाएँ मन के उस कोमल कोने से प्रसारित होती हैं जो सदा व्यक्ति के वास्तविक व्यक्तित्व से परिचय में सहायक होता है…….।
प्रेम व त्याग की प्रतिमान कलेवर से यदि साक्षात्कार करना हो तो हमारे समाज में एक जाति है, जिसका नाम स्त्री है। जो समस्त वेदना, प्रताड़ना, दुत्कारना सहती रहती है फिर भी देना नहीं छोड़ती…..।
“खैर! इन्हीं जलती-बुझती निःशब्द चिंगारियों की माला को पिरोते हुए अन्धी गलियों से रौशनी की ओर अग्रसर होने की प्रबल इच्छाओं को शब्दरूपी जाल में बुनने की चेष्टाभर है….।“
मैं कवि के कथ्य को और अधिक स्पष्ट करते हुए यह कहूँगा कि “भावावेग” काव्यसंग्रह में लेखक ने अपनी उदात्त भावनाओं के माध्यम से जनजीवन और दिनचर्चा से जुड़ी घटनाओं को अपने शब्द दिये हैं।
“नादानी” शीर्षक से इस संकलन की यह यह रचना देखिए-
“प्यार किया या की दिल्लगी
छोड़ दिया या अपनाए हो
कैसे समझूँ कि ये है क्या
नैन मिले मुड़ जाते हो
खत लिखते हो प्रेम भरा
नाम भी उसमें मेरा जुड़ा
रखके किताबों में चुप छुपके
देखते ही फिर जाते हो”
“भावावेग” का शुभारम्भ कवि ने “भावावेग” कविता से ही किया है-
“उदर का ये गोरापन
उर से इठलाती यौवन
वाणी में मधुमास लिए
नैनों में मधुवास लिए
कर दें सभी सर्वस्व समर्पण”
संकलन की दूसरी रचना को “हीनता”को परिभाषित करते हुए कवि लिखता है-
“वेदना का वेग ही घातक नहीं जग के लिए
क्रोध की अग्नि प्रबल भू-वक्ष जल पीते चले
बंजर धरा मसान का गर रूप लेकर रह गई
मिथ्या गर्व संग निष्प्राण कंठ फिर खोजते वारि फिरे”
समय की विद्रूपता पर “मैं हँसता हूँ” शीर्षक से कवि ने निम्न प्रकार से शब्द दिये हैं-
जब कुछ उद्धृत शब्द देखता हूँ
उमंगे दिल में दबाये देखता हूँ
खामोशी को अपनाये देखता हूँ
लाचारी में लिपटाये देखता हूँ
समेटे झूठी भावनाएँ देखता हूँ
मैं तो हँसता हूँ”
छल शीर्षक से संकलन की एक और रचना को भी देखिए-
“मेरे द्वार आये तुम कौन अतिथि, रूपवान भुज अशनि बल
स्वतेज प्रबल तेरे भाल अचल हैं, दमक रहा ज्यों शशि भूतल
रवि भी नहीं जिसकी उपमा, वो मनुहारी देखूँ अनिमिष
न नैन मेरे बोझिल होते हैं, ज्वार उठे मन में प्रतिपल”
जीवन में जो कुछ घट रहा है उसे कवि “कुन्दन कुमार” ने गम्भीरता से बाखूबी से चित्रित किया है। नयी कविता के सभी पहलुओं को संग-साथ लेकर काव्य शैली में ढालना एक दुष्कर कार्य होता है मगर कवि ने इस कार्य को सम्भव कर दिखाया है। कुल मिलाकर देखा जाये तो इस काव्य संग्रह की सभी कविताएँ बहुत गम्भीरता लिए हुए हैं और पठनीय है।
मुझे आशा ही नहीं अपितु पूरा विश्वास भी है कि “भावावेग” की कविताएँ पाठकों के दिल की गहराइयों तक जाकर अपनी जगह बनायेगी और समीक्षकों की दृष्टि में भी यह उपादेय सिद्ध होगी।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
समीक्षक
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
कवि एवं साहित्यकार
टनकपुर-रोड, खटीमा
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