
जुलाई, 2020 के दूसरे सप्ताह में प्रकाशित पुस्तक ‘यादों के तरू‘ काव्य संग्रह की लेखिका प्रीति चौधरी ‘मनोरमा’ जी से AuthorsWiki द्वारा एक साक्षात्कार किया गया। AuthorsWiki टीम प्रीति जी को उनके प्रथम काव्य संग्रह के प्रकाशन के लिए ढ़ेरों शुभकामनाएं देती है और उनके काव्य संग्रह की सफलता की कामना करते हैं। प्रीति जी ने साक्षात्कार में अपने लेखन अनुभव को हमारे साथ साझा किया और साथ ही बहुत सारी बातें की। पेश है उनके साथ वार्ता के कुछ अंश-
AuthorsWiki : प्रीति जी, नमस्कार। हम आपका शुक्रिया करना चाहते हैं क्योंकि आपने AuthorsWiki को साक्षात्कार के लिए अपना कीमती समय दिया। आपका परिचय पाठक आपकी किताब में पढ़ सकते है, लेकिन आपके शब्दों में आप अपना परिचय देंगें, तो सम्मानित पाठक आपके बारे मे कुछ विस्तार से जान पायेंगे?
प्रीति चौधरी ‘मनोरमा’ : नमस्कार जी। मेरा जन्म उत्तरप्रदेश के बुलन्दशहर जनपद के एक छोटे से गाँव राजपुर में हुआ। मेरे पिताजी बहुत ही परिश्रमी, योग में विश्वास रखने वाले एवं आदर्श व्यक्ति हैं। मेरी माताजी स्वभाव से बहुत उदार, दयालु और मृदुभाषी महिला हैं। हम पाँच भाई -बहिन हैं। तीनों बहिनों में मैं सबसे छोटी हूँ। मेरे परिवार में सभी सदस्य साहित्य, कला, भावना में विशेष रुचि रखते हैं। मेरे दादा जी स्वर्गीय श्री जुगेंद्र सिंह जी आध्यात्मिक, भावनात्मक और देशभक्ति से ओतप्रोत रचनाएँ लिखते थे। जिनका प्रभाव किसी हद तक मुझ पर भी पड़ा। मेरे परिवार में सभी कहते हैं कि मेरा काव्य लेखन मुझे दादाजी से उपहार स्वरूप प्राप्त हुआ है। मेरी माँ मुझे बचपन में संस्कृत और हिंदी पढ़ाती थीं। उनके विचारों, आदर्शों परिष्कृत भाषा शैली का भी गहन प्रभाव मेरे लेखन में परिलक्षित होता है।
AuthorsWiki : प्रीति जी, किसी भी लेखक या लेखिका के लिए पहली प्रकाशित पुस्तक बहुत ही मायने रखती है और उसके प्रकाशन की खुशी अलग ही होती है। आपकी भी पिछले दिनों प्रथम पुस्तक प्रकाशित हुई है, क्या आप उसे शब्दों में बता सकती हैं?
प्रीति चौधरी ‘मनोरमा’ : जी बिलकुल, यह बात शाश्वत सत्य है कि प्रत्येक लेखक या लेखिका के लिए पहली प्रकाशित पुस्तक बहुत मायने रखती है। यदि शब्दों में इस ख़ुशी को वर्णित करने की बात है तो बस इतना ही कहूँगी-
अपना प्रथम काव्य संग्रह पाकर ऐसा लगा,
जैसे हृदय की मन माँगी मुराद मिल गयी,
जैसे गुलशन में सहस्त्र सुंदर कलियाँ खिल गयी,
जैसे प्यासे को मीठा, शीतल जल मिल गया,
काव्य कल्पनाओं को भव्य पटल मिल गया।
AuthorsWiki : आपकी पहली पुस्तक पिछले दिनों ही प्रकाशित हुई है, उसके बारे में जानकारी दे, ताकि पाठक आपकी किताब के बारे में ज्यादा जान सकें?
प्रीति चौधरी ‘मनोरमा’ : मेरी यह पहली प्रकाशित पुस्तक ‘यादों के तरु’ जीवन के अधिकाँश विषयों को स्वयं में समेटे हुए है। इसमें मैंने कविताओं के माध्यम से जीवन के विभिन्न पहलुओं को अपनी कलम से स्पर्श किया है। कहीं बचपन की मासूम अटखेलियां हैं, तो कहीं जीवन को गम्भीरता से परिभाषित करती हुई रचना। मैंने बेटा और बेटी दोनों ही विषयों पर अपनी रचना लिखी है। जिसमें दोनों का अलग-अलग महत्व बताया है।
आशा का संचार करने वाली रचनाओं से युवा वर्ग, जो बहुत जल्दी हार मान लेता है, भी इस पुस्तक से लाभान्वित होगा। इसमें पुस्तक के शीर्षक पर आधारित भी एक रचना मैंने लिखी है। और मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस काव्य संग्रह की रचनाएँ प्रिय पाठक वर्ग को अपनी ओर आकर्षित करने में अवश्य ही सफ़ल होंगी।
AuthorsWiki : प्रीति जी, पुस्तक को प्रकाशित कराने का विचार कैसे बना या कैसे प्रेरणा मिली?
प्रीति चौधरी ‘मनोरमा’ : मैं सन् 2000 से कविताएं लिख रही हूं किंतु कभी कविताएं एकल संग्रह के रूप में प्रकाशित नहीं हो पायीं। विवाह के उपरांत जब मैंने अपने पति से अपने एकल संग्रह निकलवाने के स्वप्न को साझा किया तो उन्होंने मेरे इस सपने को सच कर दिखाने का मुझे आश्वासन दिया। मेरे पति मेरी भावनाओं को बखूबी समझते हैं। वह एक अच्छे पति होने के साथ-साथ मेरे सखा भी हैं जिनसे मैं अपने हृदय की प्रत्येक भावना साझा करती हूँ। उनके सहयोग से ही आज यह एकल संग्रह आप सबके समक्ष है।
AuthorsWiki : आपकी किताब ‘यादों के तरू’ के लिए आपके मित्र या परिवार या अन्य में सबसे ज्यादा सहयोग किससे प्राप्त हुआ?
प्रीति चौधरी ‘मनोरमा’ : मेरी किताब ‘यादों के तरु’ के लिए मुझे वैचारिक सहयोग मेरी परम् मित्र शाहाना परवीन जी और खेम सिंह चौहान जी से प्राप्त हुआ। जिन्होंने मुझे प्राची डिजिटल पब्लिकेशन जैसे विश्वसनीय प्रकाशक से अवगत कराया। मेरे परिवार में सबसे अधिक सहयोग मुझे मेरे पति श्री सुभाष सिंह जी से प्राप्त हुआ और मैं उनके इस सकारात्मक दृष्टिकोण, पूर्ण समर्पण और अपने प्रति उनकी आत्मीयता और अगाध विश्वास को शब्दों में व्यक्त करने में स्वयं को असमर्थ पा रही हूँ।
AuthorsWiki : प्रीति जी, आप साहित्य जगत में कब से सक्रिय हैं, आज तक अर्जित उपलब्धियों की जानकारी देना चाहेंगे?
प्रीति चौधरी ‘मनोरमा’ : जैसा कि मैं पहले भी बता चुकी हूँ कि मैं सन् 2000 से रचनाएँ लिख रही हूँ। विभिन्न साहित्यिक समूह में मेरी निरन्तर सक्रियता बनी रहती है। मैं विभिन्न ऑनलाइन कवि सम्मेलनों में भी कई बार प्रतिभाग कर चुकी हूँ।
विभिन्न समाचार पत्र और पत्रिकाओं में भी मेरी रचनाओं का प्रकाशन होता रहता है। राजस्थान के लोकप्रिय समाचारपत्र चंबल प्रभा न्यूज़, छत्तीसगढ़ के लोकप्रिय समाचार पत्र नवीन कदम, नोएडा के लोकप्रिय समाचार पत्र दैनिक वर्तमान अंकुर, मेरठ के समाचार पत्र विजय दर्पण टाइम्स, मध्यप्रदेश के लोकप्रिय न्यूज़ पेपर इंदौर समाचार पत्र में मेरी रचनाएँ समय-समय पर प्रकाशित होती रहतीं हैं।
AuthorsWiki : पुस्तक ‘यादों के तरू’ के लिए रचनाओं के चयन से लेकर प्रकाशन प्रक्रिया तक के अनुभव को पाठकों के साथ साझा करना चाहेंगी?
प्रीति चौधरी ‘मनोरमा’ : चूँकि ‘यादों के तरु’ मेरा प्रथम काव्य संग्रह है। मैं प्रकाशन को लेकर शुरुआत में तनिक चिंतित थी। किन्तु प्रकाशक महोदय ने मेरे मस्तिष्क पटल से सारी चिंताओ को दूर कर दिया। रचनाओं के चयन से लेकर प्रकाशन तक मुझे किसी भी अप्रत्याशित समस्या का सामना नहीं करना पड़ा। प्राची डिजिटल पब्लिकेशन की मैं सदैव ऋणी रहूँगी, जिन्होंने मेरे प्रथम काव्य संग्रह के प्रकाशन में आकर्षक कवर पेज़ और अपने उचित मार्गदर्शन से चार चाँद लगा दिए।
AuthorsWiki : प्रीति जी, आप सबसे ज्यादा लेखन किस विद्या में करतीं है? और क्या इस विद्या में लिखना आसान है?
प्रीति चौधरी ‘मनोरमा’ : मैं सबसे ज़्यादा लेखन कविता विधा में ही करती हूँ। हाइकू लिखना भी मुझे बहुत पसंद है। जी कविता लिखना आसान नहीं है किंतु यदि हृदय में भावनाओं का सागर हो, भाषा पर अच्छी पकड़ हो, मन में लिखने की लगन हो तो लिखना बहुत आसान है।
AuthorsWiki : प्रीति जी, आप परिवार और शिक्षा सेवा में कार्यरत रहकर साहित्य सृजन के लिए समय कैसे निकालते हैं?
प्रीति चौधरी ‘मनोरमा’ : परिवार और शिक्षा सेवा में रहते हुए भी लेखन कार्य करने में मैं स्वयं को सहज अनुभव करती हूँ, क्योंकि शिक्षा से जुड़े रहने के कारण मेरे शब्दकोश में वृद्धि होती है और मेरा परिवार भी लिखने के लिए मुझे प्रेरित करता है।
AuthorsWiki : प्रीति जी, आप अपनी रचनाओं के लिए प्रेरणा कहां से प्राप्त करते है?
प्रीति चौधरी ‘मनोरमा’ : मेरी रचनाओं के लिए मेरी प्रेरणा स्त्रोत मेरी माँ हैं। मैंने अपनी अधिकाँश रचनाएँ अपनी माँ के लिए ही समर्पित की हैं। मेरे लेखन को उन्होंने ही पग-पग सराहना करके और बेहतर बनाया है। मेरी लेखनी के लिए मेरी माँ स्याही के समान है।मेरी दोनों बड़ी बहनें सदैव मेरा और मेरे लेखन का उत्साहवर्धन करती रहीं हैं। उनके अमूल्य मार्गदर्शन की मैं सदैव ऋणी रहूँगी।
AuthorsWiki : आपके जीवन में प्राप्त विशेष उपलब्धि, जिसे आप हमारे और अपने पाठकों के साथ भी शेयर करना चाहें?
प्रीति चौधरी ‘मनोरमा’ : मेरे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि यह मेरा प्रथम काव्य संग्रह ‘यादों के तरू’ है। यह मेरी वर्षों की साहित्य साधना का परिणाम है। मैं अपनी एक और विशेष उपलब्धि से सम्मानित पाठकों को अवगत कराना चाहूँगी कि मुझे वर्ष 2020 के ‘महादेवी वर्मा नारी साहित्य सम्मान पत्र’ से भी विभूषित किया गया है।
AuthorsWiki : हर लेखक का अपना कोई आईडियल होता है, क्या आपका भी कोई आईडियल लेखक या लेखिका हैं? और आपकी पसंदीदा किताबें जिन्हें आप हमेशा पढ़ना चाहेंगी?
प्रीति चौधरी ‘मनोरमा’ : जहाँ तक लेखिका की बात है मेरी आदर्श महादेवी वर्मा जी हैं। इनकी कविताओं को हृदय बार -बार पढ़ने की इच्छा रखता है। मेरी पसंदीदा पंक्तियाँ हैं-
मैं नीर भरी दुःख की बदली,
परिचय इतना इतिहास यही,
उमड़ी कल थी मिट आज चली,
मैं नीर भरी दुःख की बदली।
लेखकों में आदरणीय कुमार विश्वास जी की कविताएँ हृदय को स्पर्श करती हैं। मेरी पसंदीदा किताबें जिन्हें मैं हमेशा पढ़ना चाहूँगी में प्रेमचंद जी के उपन्यास कर्मभूमि और रंगभूमि हैं।
AuthorsWiki : हिन्दी भाषा और हिन्दी साहित्य के उत्थान पर आप कुछ कहना चाहेंगे?
प्रीति चौधरी ‘मनोरमा’ : हिंदी भाषा और हिंदी साहित्य का उत्थान उत्कृष्ट साहित्यकारों को पढ़कर ही संभव है। इसके लिए हमें अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी के महत्व से दुनिया को अवगत कराना होगा। हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार करना होगा।
AuthorsWiki : शिक्षण कार्य और साहित्य सृजन के अलावा अन्य शौक या टाईमपास भी कह सकते हैं, जिन्हे आप खाली समय में करना पसंद करते हैं?
प्रीति चौधरी ‘मनोरमा’ : जी, शिक्षण कार्य और साहित्य सृजन के अलावा मुझे गायन का बहुत शौक है। पुराने हिंदी गीत सुनना मुझे बहुत पसंद है। ये गाने व्यक्ति में नई ऊर्जा भर देते हैं। जैसे…
“चन्दा चले, चले रे तारा,
गंगा बहे, बहे रे धारा,
तुझको चलना होगा..
तुझको चलना होगा…”
AuthorsWiki : प्रथम पुस्तक प्रकाशन के दौरान प्रकाशक का सहयोग कैसा रहा?
प्रीति चौधरी ‘मनोरमा’ : मेरा प्रथम पुस्तक प्रकाशन का अनुभव बहुत ही यादगार रहा। प्रकाशक महोदय का मुझे पूर्ण सहयोग प्राप्त हुआ। मैं हृदय से प्राची डिजिटल पब्लिकेशन की आभारी हूँ, जिन्होंने मेरे प्रथम काव्य संग्रह को अपने उचित मार्गदर्शन और सकारात्मक ऊर्जा से भर दिया। पुस्तक का कवर पेज़ बिल्कुल मनमाफिक… उम्मीद से कहीं बेहतर और आकर्षक बनाया।
AuthorsWiki : प्रीति जी, क्या भविष्य में कोई किताब लिखने या प्रकाशित करने की योजना बना रहें हैं? यदि हां! तो अगली पुस्तक किस विषय पर आधारित होगी?
प्रीति चौधरी ‘मनोरमा’ : मैं भविष्य में भी पुस्तक प्रकाशित करने की योजना बना रही हूँ। जी मेरी अगली पुस्तक विभिन्न कवियों की अंग्रेजी कविताओं के हिंदी अनुवाद पर आधारित होगी।
AuthorsWiki : साहित्य की दुनिया में नये-नये लेखक आ रहे है, उन्हें आप क्या सलाह देगें?
प्रीति चौधरी ‘मनोरमा’ : मैं साहित्य की दुनिया में आने वाले नवांकुरों को यही सलाह देना चाहूँगी कि हमें अपनी लेखनी को सशक्त बनाना है, समाज की कुरीतियों पर प्रहार करने वाला हथियार बनाना है। नैराश्य के तिमिर में खो चुके व्यक्तियों के हृदय में आशा दीप जलाने हैं। अपने लेखन के द्वारा समाज का कल्याण करना है।
AuthorsWiki : क्या आप भविष्य में भी लेखन की दुनिया में बने रहना चाहेंगे?
प्रीति चौधरी ‘मनोरमा’ : मैं लेखन से आजीवन जुड़ी रहूँगी, क्योंकि लेखन मेरी साँसे हैं… जीवन है…. आत्मा है… हृदय है… बिना लेखनी के मेरा जीवन निष्प्राण है।
AuthorsWiki : प्रीति जी, यह अंतिम प्रश्न है, आप अपने अज़ीज शुभचिन्तकों, पाठकों और प्रशंसकों के लिए क्या संदेश देना चाहेंगी?
प्रीति चौधरी ‘मनोरमा’ : मैं अपने प्रिय पाठकों को चार पंक्तियों के माध्यम से संदेश देना चाहूँगी-
जीवन अग्नि में तपकर मनुज हो जाता है सोना,
जीवन की परीक्षा में कभी पाना है कभी खोना,
होंठों पर सजाकर रखें मुस्कुराहट सदा प्रीति,
जीवन की समस्याओं को देख, नहीं चाहिये रोना।
About the Book
‘यादों के तरु’ में मैंने कविताओं के माध्यम से जीवन के प्रत्येक पहलू को स्पर्श करने का प्रयास किया है। कोई कविता प्रेम को परिभाषित करती है.. कोई बचपन की गलियों में विचरण करती प्रतीत होती है… कभी कविता प्रेरणा संगीत बनकर जीवन को आशा से पूर्ण करती है… कभी इसके विपरीत कविता जीवन का दुःख और विषाद व्यक्त करती है… अधिकाँश कविताएँ मैंने अपनी प्राण-प्रिय माँ के चरण कमलों में अर्पित की हैं। इस संसार में एक से एक उत्कृष्ट रचनाकार हैं। किंतु चंद व्यक्ति ही साहित्य के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने में सफल होते हैं। जैसे रेगिस्तान में खिलने वाले दुर्लभ पुष्प अपनी सुगंध बिखेरकर मुरझा जाते हैं। जग उनकी महक से अनभिज्ञ रहता है। वैसे ही कुछ प्रतिभाशाली व्यक्ति अपनी प्रतिभा से इस जग को सुगंधित करने में असमर्थ होते हैं, क्योंकि उन्हें पर्याप्त अवसर नहीं मिल पाता है।
– प्रीति चौधरी ‘मनोरमा’ (लेखिका)
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बहुत ही शानदार परिचय प्रीति जी