‘काव्य प्रभा’ साझा काव्य संकलन के लेखक दिनेश सिंह नेगी जी से साक्षात्कार

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पिछले दिनों प्राची डिजिटल पब्लिकेशन के द्वारा काव्य प्रभा साझा काव्य संग्रह प्रकाशित किया गया है। जिसका संपादन सुधा सिंह ‘व्याघ्र’ द्वारा किया गया है। ‘काव्य प्रभा’ में देश भर से कई कवियो ने प्रतिभाग किया है, जिनमें से कुछ कवियो के साक्षात्कार प्रकाशित किये जा रहे हैं। पेश है ‘काव्य प्रभा’ काव्य संग्रह के एक लेखक दिनेश सिंह नेगी जी से साक्षात्कार-

AuthorsWiki : क्या आप अपने शब्दों में हमारे सम्मानित पाठकों को अपना परिचय देना चाहेंगे? क्योंकि आपके शब्दों में हमारे पाठक आपके बारे में ज्यादा जान पाएंगे।

Dinesh Singh Negi : मै दिनेश सिंह नेगी, देवभूमि उत्तराखंड के जिला-चमोली गढ़वाल के जोशीमठ का रहने वाला हूँ। मैने शिक्षा विज्ञान वर्ग से स्नातक और पुस्कालय विज्ञान से स्नातक व मास्टर की डिग्री की है। वर्तमान में अध्ययन कार्य, लेखनकार्य व सामाजिक कार्य से जुड़ा हुआ हूँ।

AuthorsWiki : साझा काव्य संग्रह ‘काव्य प्रभा’ में अन्य सहयोगी रचनाकारों के साथ सहयोगी रचनाकार के रूप में आपका अनुभव कैसा रहा?

Dinesh Singh Negi : मेरा अनुभव बहुत ही अच्छा रहा है इस प्रकार से लेखकों का एक साथ काव्य संग्रह के रूप में प्रकाशित होना मेरे लिए सौभाग्य की बात है हमें अपने के साथ ही अन्य लेखकों, रचनाकारों को जानने का और पढ़ने का मौका मिलेगा। इसके लिए मैं प्राची डिजिटल पब्लिकेशन का बहुत बहुत धन्यवाद करना चाहूँगा।

AuthorsWiki : साझा काव्य संग्रह ‘काव्य प्रभा’ में आपकी रचनाएं किस विषय पर आधारित हैं?

Dinesh Singh Negi : मेरी रचनाएं सामाजिक, देशहित के विषय पर साझा काव्य संग्रह में है।

AuthorsWiki : आप कब से लेखन कर रहें हैं और लेखन के अलावा आप क्या व्यवसाय करते है?
Dinesh Singh Negi : मैं पिछले चार-पाँच वर्षों से लेखन कार्य कर रहा हूँ। फिलहाल मैं अध्ययन कार्य में कार्यरत हूँ।

AuthorsWiki : आपकी पसंदीदा लेखन विधि क्या है, जिसमें आप सबसे अधिक लेखन करते हैं?

Dinesh Singh Negi : मुझे लेखन विधियों के विषय में ज्यादा जानकारी नहीं है, लेकिन अपनी ओर से एक प्रयास कर रहा हूँ। उन छोटे प्रयासों के अर्न्तगत मैं सामाज के प्रत्येक पहलूओं पर लिखने का प्रयास करता रहता हूँ। जो पाठकों को प्रेरणा प्रदान करें।

AuthorsWiki : हिन्दी भाषा और हिन्दी साहित्य के उत्थान पर आप कुछ कहना चाहेंगे?

Dinesh Singh Negi : जहाँ तक मैं समझता हूँ कि हिंदी भाषा मेरी मातृभाषा ओर देश की राष्ट्रभाषा है। मैं अपनी मातृभाषा हिंदी पर गर्व फख्र से गर्व करता हूँ। हिंदी साहित्य का उत्थान आज के समय में बहुत तेजी से हो रहा है। आज हिंदी साहित्य का विकास और श्रेय जाना चाहिए वो है हिंदी साहित्यकार, उपन्यासकार “मुंशी प्रेमचंद को। मेरे लिये वे आदर्श हैं।

AuthorsWiki : लेखन के अलावा आपके शौक या हॉबी?

Dinesh Singh Negi : लेखन के अलावा मुझे खाना बनाना, ऐतिहासिक और पौराणिक स्थलों पर घूमना बहुत पसंद है। इसके अलावा मैं सदैव ही पर्यावरण संरक्षण, पानी और स्वच्छता पर कार्य करना, समझाना मेरा प्रिय कार्य रहा है और जब तक जीवन है तब तक रहेगा।

AuthorsWiki : अपने पाठकों और प्रशंसकों को क्या संदेश देना चाहते हैं?

Dinesh Singh Negi : मैं अपने पाठकों और प्रशंसकों को यही संदेश देना चाहता हूँ कि आज के सोशल मीडिया के युग में अच्छे हिन्दी के लेखकों को फॉलों करें, हिन्दी कवियों की किताबों खरीदकर या पुस्कालय में जाकर जरूर पढ़ें, ताकि नये कवियों को प्रोत्साहन मिले। अगर हो सके तो अपने घर में अच्छी किताबों का एक छोटा सा पुस्कालय जरूर बनाइये और निरंतर इन किताबों को पढ़ते रहिए। मेरे लिए भी किताब ही सबसे अच्छा मित्र या दोस्त है।

AuthorsWiki : आपके पाठकों को काव्य प्रभा क्यो पढ़नी चाहिए? इस बारे में कुछ कहना चाहेंगे?

Dinesh Singh Negi : काव्य प्रभा इसीलिए पढ़ना चाहिए क्योंकि इसमें बहुत से लेखकों के अपनी कविताओं के रूप में योगदान दिया है, जो कि अपने आप में विशेष संग्रह है। मै अपने पाठकों से यही कहना चाहूंगा कि इस पुस्तक को जरूर पढ़िये।

About the ‘Kavya Prabha

‘काव्य प्रभा’ साझा काव्य संकलन के लेखक दिनेश सिंह नेगी जी से साक्षात्कार

साहित्य के सभी रसों से पगी ‘काव्य प्रभा’ एक मित्र की भाँति कभी आपको गुदगुदाएगी तो कभी आपके मन-मस्तिष्क को झकझोरती-सी प्रतीत होगी। इस पुस्तक में जहाँ एक ओर विशुद्ध हिंदी की रचनाएँ आपके मन में पैठ जमाती लक्षित होंगी, वहीं दूसरी ओर उर्दू के कुछ ख़याल भी अपना जादू बिखेरते नज़र आएँगे। काव्य प्रभा में स्थापित साहित्यकारों के साथ-साथ नवोदित रचनाकार भी आपको अपनी साहित्य सुरभि की मोहक बयार से सहलाएँगे। ‘काव्य प्रभा’ के सभी रचनाकार साहित्य रूपी सागर के उन अनमोल मोतियों की तरह है जिनकी तलाश हर साहित्य प्रेमी को होती है। उम्मीद है इन्हें पढ़कर साहित्य रसिकों की साहित्य पिपासा अवश्य ही शांत होगी।

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