Dhoop Bin Din by Dr. Chandrabhal Sukumar

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सामाजिक बदलाव के इस आधुनिक काल में अनायास ही सहज संवेदनशील गजलों का महत्व बहुत बढ़ गया है, मनुष्य के पास समय नहीं है, वह थोड़े से समय में बहुत कुछ जान लेना चाहता है। साहित्यिक कैप्सूल के रूप में गजलों का प्रयोग आज धड़ल्ले से हो रहा है। ‘धूप बिन दिन’ से गुजरते हुए यह एहसास और स्वस्थ और आकर्षक लगता है। नये वर्ष पर शुभकामनाओं का आदान-प्रदान एक सामान्य प्रक्रिया है।

‘धूप बिन दिन’ की गजलों से इस धारणा की पुष्टि होती है कि सुकुमार जी एक शुद्ध मानवतावादी संवेदनशील गजलकार हैं जिनमें करुणा, दया, ममता और छल-प्रपंच को भी गजलों में ढालकर साफगोई से कह देने की क्षमता है, जिनमें प्रश्न है, प्रेम है, पीड़ा है और यथार्थ की पारदर्शी अभिव्यक्ति है! श्री सुकुमार की 70वीं वर्षगांठ पर प्रकाशित इस नवीनतम गजल-संग्रह के लिए अनेकानेक बधाइयां एवं आशीष भी।

– डाॅ0 जयनाथ मणि त्रिपाठी
संपादक (अंचल भारती)
साहित्यिक त्रैमासिकी, देवरिया

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Book Information’s

Author
ISBN
978-93-87856-12-7
Language
Hindi
Pages
94
Binding
Paperback
Genre
Ghazals
Publish On
April, 2020
Publisher

About the Author

लेखक डा. चन्द्रभाल सुकुमार पूर्व न्यायाधीश एवं साहित्यकार है। उनकी अब तक दजर्नों पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। दो दर्जन से अधिक सह-संकलनों में रचनाएं संकलित, प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित एवं आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से प्रसारित। शताधिक साहित्यिक, सांस्कृतिक, न्यायिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित/अलंकृत। आपकी डॉ0 भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, आगरा द्वारा ‘‘समकालीन हिन्दी गजल को चन्द्रभाल सुकुमार का प्रदेय’’ विषयक शोध प्रबन्ध पी.एच.डी. हेतु स्वीकृत है। काव्यायनी साहित्यिक वाटिका (तुलसी जयंती, 1984) के संस्थापक-अध्यक्ष है। 35 वर्षों की न्यायिक सेवा के उपरांत जनपद न्यायाधीश, इलाहाबाद के पद से 2010 में सेवा निवृत्त होने के बाद 2011 में राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0 प्र0 लखनऊ में वरिष्ठ न्यायिक सदस्य के पद पर नियुक्त एवं प्रभारी अध्यक्ष के पद से 2016 में सेवा-निवृत्त।

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