
पिछले दिनों प्राची डिजिटल पब्लिकेशन के द्वारा काव्य प्रभा साझा काव्य संग्रह प्रकाशित किया गया है। जिसका संपादन सुधा सिंह ‘व्याघ्र’ द्वारा किया गया है। ‘काव्य प्रभा’ में देश भर से कई कवियो ने प्रतिभाग किया है, जिनमें से कुछ कवियो के साक्षात्कार प्रकाशित किये जा रहे हैं। उन्हीं कवियों में कुन्दन कुमार जी शामिल हैं, जिनका एकल काव्य संग्रह पूर्व में भी प्रकाशित हो चुका है। कुंदन जी का पूर्व में एक साक्षात्कार प्रकाशित हुआ है। इसके साथ ही आपके लिए पेश है ‘काव्य प्रभा’ काव्य संग्रह के लेखक कुंदन कुमार जी से वार्ता के कुछ अंश-
पूर्व में प्रकाशित कुंदन कुमार जी का साक्षात्कार पढ़ें।
AuthorsWiki : साझा काव्य संग्रह ‘काव्य प्रभा’ में अन्य सहयोगी रचनाकारों के साथ सहयोगी रचनाकार के रूप में आपका अनुभव कैसा रहा?
कुंदन कुमार : मैं अत्यंत ही उत्साहित, रोमांचित एवं गौरव का अनुभव कर रहा हूं। इतने सारे सम्मानित एवं आदरणीय रचनाकारों के साथ मंच साझा करने का सुअवसर, मेरे लिए सौभाग्य की बात है। इस साझा काव्य संग्रह में प्रतिभाग करने हेतु जानकारी प्रदान करने के लिए मैं प्राची डिजिटल पब्लिकेशन के प्रति आभारी हूं। साथ ही संग्रह की संपादिका का भी आभार प्रकट करता हूं। जिन्होंने मेरी रचनाओं को संकलन के उपयुक्त समझा एवं मुझे गौरवान्वित होने का अवसर प्रदान किया।
AuthorsWiki : साझा काव्य संग्रह ‘काव्य प्रभा’ में आपकी रचनाएं किस विषय पर आधारित हैं?
कुंदन कुमार : साझा काव्य संग्रह “काव्य प्रभा” में मेरी छ: विविधवर्णी रचनाएं हैं। जिनमें प्रेम की लुभावनी महक है, थोड़ा व्यंग्य है, एक मां की परेशानियों के प्रति शिशु की करुण वेदना भी है, साथ ही देश की रक्षा के लिए कर्तव्यनिष्ठ एक सिपाही की शौर्य गाथा एवं स्व चिंतन का भी उल्लेख करने की मैंने कोशिश की है।
AuthorsWiki : साहित्यिक सेवा के लिए आपको अब तक कितने सम्मान प्राप्त हुए हैं? क्या आप उनके बारे मे कोई जानकारी देना चाहेंगे?
कुंदन कुमार : यूं कहें कि साहित्य के क्षेत्र में मेरा अभी ठीक से पदार्पण भी नहीं हुआ है। परंतु, साहित्य सृजन का निरंतर प्रयास एवं साहित्यिक कृतियों से जुड़े रहना मुझे अत्यंत प्रिय है। यह मेरा मानना है कि साहित्य सेवा केवल लेखनी नहीं, अपितु साहित्यकारों का सम्मान तथा उनकी कृतियों को अमूल्य भेंट की तरह संजो कर रखना भी एक प्रकार का साहित्य सेवा ही है। अतः विभिन्न साहित्यकारों का सम्मान ही मेरे लिए वरिष्ठतम सम्मान के बराबर है।
AuthorsWiki : कुंदन जी, आपका एकक काव्य संग्रह पूर्व में प्रकाशित हो चुका है, उसके बारे में बताएं?
कुंदन कुमार : मेरी अब तक “भावावेग” नामक एक/प्रथम काव्य संग्रह प्राची डिजिटल पब्लिकेशन के सौजन्य से प्रकाशित हुई है। जो एक सौ बीस पृष्ठ की पैंतीस विविध वर्णी रचनाओं को संजोए हुए है। “भावावेग” पुस्तक की भूमिका साहित्य सुधा के संपादक डॉ अनिल चड्डा जी ने लिखी है। इस पुस्तक में मैंने स्व चिंतन एवं अपनी उमड़ती भावनाओं को स्वर प्रदान करने की कोशिश की है।
AuthorsWiki : अपने पाठकों और प्रशंसकों को क्या संदेश देना चाहते हैं?
कुंदन कुमार : हिंदी साहित्य जितना रमणीय, रोचक व रोमांच से सराबोर है, उतना ही अन्य भाषा का साहित्य भी हो सकता है। परंतु, हिंदी साहित्य की खास बात यह है कि यह आपको कल्पनाओं की सैर नहीं करवाता बल्कि, वास्तविकता का दर्पण प्रदान करता है। जहां अन्य भाषा स्थानीय घटनाओं व पृष्ठभूमि तक ही सीमित रह जाती है, वही हिंदी साहित्य संपूर्ण देश के साथ-साथ संपूर्ण विश्व को भी एक बंधन में बांधने का कार्य करती है। मैं अपने पाठकों से यही कहना चाहूंगा कि जहां तक संभव हो हिंदी से जुड़े रहिए और अपने संबंधियों को भी इसके साथ जोड़कर हिंदी के उत्थान में सहयोग प्रदान कीजिए।
AuthorsWiki : आपके पाठकों को काव्य प्रभा क्यो पढ़नी चाहिए? इस बारे में कुछ कहना चाहेंगे?
कुंदन कुमार : एक अंजुली जल में यदि प्यास को पूर्ण रूप से समाप्त करने की क्षमता हो, तो इससे अधिक मनभावन क्या हो सकती है। “काव्य प्रभा” बिल्कुल ऐसा ही काव्य संग्रह है। इसमें विविध प्रकार के विविध वर्णी रचनाएं संकलित हैं। जो आपको काव्य की समस्त विधाओं का, समस्त रूपों को, समस्त भावनाओं और अनेक रचनाकारों के बदलते मनोभावों का अनुभव एक साथ प्रदान करेगी।
About the ‘Kavya Prabha‘
साहित्य के सभी रसों से पगी ‘काव्य प्रभा’ एक मित्र की भाँति कभी आपको गुदगुदाएगी तो कभी आपके मन-मस्तिष्क को झकझोरती-सी प्रतीत होगी। इस पुस्तक में जहाँ एक ओर विशुद्ध हिंदी की रचनाएँ आपके मन में पैठ जमाती लक्षित होंगी, वहीं दूसरी ओर उर्दू के कुछ ख़याल भी अपना जादू बिखेरते नज़र आएँगे। काव्य प्रभा में स्थापित साहित्यकारों के साथ-साथ नवोदित रचनाकार भी आपको अपनी साहित्य सुरभि की मोहक बयार से सहलाएँगे। ‘काव्य प्रभा’ के सभी रचनाकार साहित्य रूपी सागर के उन अनमोल मोतियों की तरह है जिनकी तलाश हर साहित्य प्रेमी को होती है। उम्मीद है इन्हें पढ़कर साहित्य रसिकों की साहित्य पिपासा अवश्य ही शांत होगी।
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