
AuthorsWiki को साक्षात्कार के लिए अपना कीमती समय देने के लिए बिनोद कुमार मंडल जी आपका धन्यवाद करते हैं। बिनोद जी को साहित्यिक उपनाम ‘नैतिक’ से भी जाना जाता है। लेखक पेशे से एक शिक्षक हैं और बिहार के कटिहार जिला के बरमसिया में निवासरत हैं। AuthorsWiki को दिए गए साक्षात्कार में बिनोद जी ने अपनी साहित्यिक यात्रा को हमारे साथ शेयर किया। आशा करते हैं कि पाठकों को बिनोद जी का साक्षात्कार पसंद आएगा। साक्षात्कार के कुछ प्रमुख अंश आपके लिए प्रस्तुत हैं-
AuthorsWiki : आपकी पुस्तक ‘मन की तरंगे’ पिछले दिनों ही प्रकाशित हुई है, उसके बारे में जानकारी दे, ताकि पाठक आपकी किताब के बारे में ज्यादा जान सकें?
विनोद कुमार : मैं बस इतना कहना चाहता हूँ कि ‘मन की तरंगें’ हमारे समाज में घटित होने वाले हरेक छोटी बड़ी घटनाओं पर आधारित एक काव्य संग्रह है। जिसमें आपको शिक्षक, मजदूर, किसान से लेकर प्रकृति चिंतन एवं ग्रामीण परिवेश की पुरानी यादें ताजा करती हुई तस्वीर प्राप्त होगी। ‘मन की तरंगे ‘ आपको निराश नहीं करेगी। मुझे आशा है पढ़ कर आप आनंदित हीं होंगे।
AuthorsWiki : बिनोद कुमार जी, पुस्तक प्रकाशित कराने का विचार कैसे बना या किसी ने प्रेरणा दी?
विनोद कुमार : जी मैं यहाँ बताना चाहूँगा कि इससे पहले भी मेरा एक काव्य संग्रह ‘अंतर्ध्वनि’ प्रकाशित हो चुका है। वैसे बचपन से हीं मुझे कविता के प्रति लगाव रहा है। जहाँ तक पुस्तक प्रकाशित कराने की बात है तो इसके मेरे दोस्तगन एवं मेरी भांजी मनीषा अक्सर प्रेरित करते रहती थी।
AuthorsWiki : पुस्तक के लिए रचनाओं के चयन से लेकर प्रकाशन प्रक्रिया तक के अनुभव को पाठकों के साथ साझा करना चाहेंगें?
विनोद कुमार : पुस्तक के लिए रचनाओं का चयन मेरा किसी एक विषय पर नहीं है। जैसा कि पुस्तक का नाम है ‘मन की तरंगें’। मन जहाँ जहाँ भटकता गया वहाँ वहाँ से रचनाएँ संग्रहित करता गया और फिर एक दिन प्रकाशन के लिए तैयार हो गया।
AuthorsWiki : आपकी पहली सृजित रचना कौन-सी है और साहित्य जगत में आगमन कैसे हुआ, इसके बारे में बताएं?
विनोद कुमार : मेरी पहली सृजित रचना है ‘प्यारा हिन्दुस्तान’ जिसे मैंने कालेज के दिनों में हिन्दी दिवस के अवसर पर कालेज के हीं एक साहित्यिक गोष्ठी में सुनाया था।
AuthorsWiki : अब तक के साहित्यिक सफर में ऐसी रचना कौन सी है, जिसे पाठकवर्ग, मित्रमंडली एवं पारिवारिक सदस्यों की सबसे ज्यादा प्रतिक्रिया प्राप्त हुई?
विनोद कुमार : वैसे तो मेरी हर रचनाओं में पाठकों की अच्छी खासी प्रतिक्रिया प्राप्त होती है। किन्तु सबसे ज्यादा प्रतिक्रिया मुझे ‘खेलो मत प्रकृति से’ कविता में प्राप्त हुई है।
AuthorsWiki : बिनोद कुमार जी, किताब लिखने या साहित्य सृजन के दौरान आपके मित्र या परिवार या अन्य में सबसे ज्यादा सहयोग किससे प्राप्त होता है?
विनोद कुमार : मेरी भांजी मनिषा का, जिन्होंने हमेशा मेरी रचनाओं को सराहा एवं साहित्य सृजन के लिए प्रेरित किया।
AuthorsWiki : बिनोद कुमार जी, साहित्य जगत से अब तक आपको कितनी उपलब्धियाँ / सम्मान प्राप्त हो चुके हैं? क्या उनकी जानकारी देना चाहेंगें?
विनोद कुमार : साहित्य जगत में उपलब्धि कुछ खास नहीं है। जो थोड़ी-बहुत है यहीं है -जिसमें भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा शांतिकुंज, हरिद्वार के द्वारा सम्मानित, BMP पब्लिशर द्वारा उत्कृष्ट साहित्य सृजन हेतु ‘साहित्य सेवा गौरव रत्न’ एवं ‘हिन्द साहित्य रत्न’ से सम्मान आदि प्रमुख नाम हैं। इसके अलावा कई साहित्यिक समारोह में सम्मानित किया गया है। प्रकाशित पुस्तकें :- 1. अंतर्ध्वनि, 2. मन की तरंगे (कविता संग्रह), महकते ख्वाब, आरजू, खूबसूरत लम्हें, बसंत की बहार रंगो की फुहार (साझा काव्य संग्रह) और कुछ अंगिका कविताएँ जो अभी प्रकाशित नहीं हुआ है।
AuthorsWiki : बिनोद कुमार जी, आप सबसे ज्यादा लेखन किस विद्या में करतें है? और क्या इस विद्या में लिखना आसान है?
विनोद कुमार : मैं सबसे ज्यादा कविता हीं लिखता हूँ और मुझे कविता लिखना हीं आसान लगता है।
AuthorsWiki : बिनोद कुमार जी, आप साहित्य सृजन के लिए समय का प्रबंधन कैसे करते हैं?
विनोद कुमार : विद्यालय के समय से मुझे जब भी मौका मिलता है तो मैं पुस्तकें पढ़ता हूँ और साहित्य सृजन करता हूँ।
AuthorsWiki : बिनोद कुमार जी, आप अपनी रचनाओं के लिए प्रेरणा कहां से प्राप्त करते है?
विनोद कुमार : विभिन्न साहित्यकारों की रचनाओं को पढ़कर।
AuthorsWiki : आपके जीवन में प्राप्त विशेष उपलब्धि या यादगार घटना, जिसे आप हमारे पाठकों के साथ भी शेयर करना चाहते हैं?
विनोद कुमार : फणीश्वर नाथ रेणु जी के सहकर्मी एवं अभिन्न मित्र श्री भोला पंडित प्रणयी जी के द्वारा मेरी रचनाओं की तारीफ में मेरा पीठ थपथपाना मेरे लिए अविस्मरणीय घटना है।
AuthorsWiki : हर लेखक का अपना कोई आईडियल होता है, क्या आपका भी कोई आईडियल लेखक या लेखिका हैं? और आपकी पसंदीदा किताबें जिन्हें आप हमेशा पढ़ना पसंद करते हैं?
विनोद कुमार : मेरा आईडियल लेखक है नागार्जुन और निराला जी। जिनको पढ़ना मुझे बहुत अच्छा लगता है।
AuthorsWiki : हिन्दी भाषा और हिन्दी साहित्य के उत्थान पर आप कुछ कहना चाहेंगे?
विनोद कुमार : हिन्दी की उत्थान तभी संभव है जब युवा पीढ़ी अंग्रेजी को अपना स्टेटस और हिन्दी को शर्मिन्दगी समझना छोड़ देंगे।
AuthorsWiki : साहित्य सृजन के अलावा अन्य शौक या हॉबी, जिन्हे आप खाली समय में करना पसंद करते हैं?
विनोद कुमार : सैर सपाटा, नई नई जगह घुमना।
AuthorsWiki : बिनोद कुमार जी, क्या भविष्य में कोई किताब लिखने या प्रकाशित करने की योजना बना रहें हैं? यदि हां! तो अगली पुस्तक किस विषय पर आधारित होगी?
विनोद कुमार : मेरी अगली पुस्तक भी एक काव्य संग्रह ही होगी किन्तु वो अंगिका भाषा में होगी।
AuthorsWiki : साहित्य की दुनिया में नये-नये लेखक आ रहे है, उन्हें आप क्या सलाह देगें?
विनोद कुमार : रचनाएं चाहे जैसी भी हो मौलिक होनी चाहिए। तभी आप आगे बढ़ पायेंगे।
AuthorsWiki : क्या आप भविष्य में भी लेखन की दुनिया में बने रहना चाहेंगे?
विनोद कुमार : जी जरूर।
AuthorsWiki : बिनोद कुमार जी, यह अंतिम प्रश्न है, आप अपने अज़ीज शुभचिन्तकों, पाठकों और प्रशंसकों के लिए क्या संदेश देना चाहते हैं?
उत्तर : देखना सोचकर-
बिछड़ें न किसी से रुठकर
जो चाहते हैं तुम्हें टुटकर।
किसी की मजबूरियों का फायदा उठाकर ,
अपनी मूंछें ऐंठो मत, किसी को दबाकर।
सुन ! छोटी-छोटी बातों पर ना कर बखेड़ा
किसीका मानमर्दन से,भला क्या होगा तेरा ?
जबतक अपनी गलती को हम महसूस करें
कि कैसे हमसे इतना बड़ा अपराध हुआ ?
कहीं ऐसा न हो हमसे अपने रुठ जाए
दुनियां को कह अलविदा, हमें छोड़ जाए ,
तब मन हीं मन तुम्हें रोना होगा छुप छुपाकर,
बस इतना हीं हमें कहना है, देखना सोचकर।
बिछड़ें न किसी से रुठकर
जो चाहते हैं तुम्हें टुटकर।
लेखक बिनोद कुमार जी की पुस्तक ‘मन की तरंगें‘ को अमेजन और फ्लिपकार्ट से प्राप्त किया जा सकता है।
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