
हिंदी साहित्य में शायद हिंदुस्तान में पहिली बार ये प्रयोग किया जा रहा है। विज्ञान, आनेवाला प्रौद्योगिकी भविष्य और मनुष्य जीवन को खूबी से कविताओं द्वारा पेश किया है। एकदम सरल भाषा में लिखी हुई ये कविताएँ पढकर आपको अवश्य ये महसूस होगा की हम कितने भयानक भविष्य की ओर रहें हैं।
मसकत, ओमान स्थित भारतीय कवी संतोष कदम ने पिछले कई वर्षों से इस साय फाय कविताओंके फॉर्मेट पर काम किया है और जो पेश किया है वो सचमुच विचार करने को मजबूर कर देता है। उन्होंने कुछ रचनात्मक संकल्पनाएँ प्रस्तुत की है जो भविष्य में जरूर सच हो सकती है।
शिक्षा से इंजिनीअर और पेशे से मैनेजर होने की वजह से शायद उन्होंने समाज को ३६० डिग्री में यूँ महसूस किया उनकी कविताओं में समाज का हर अंग झलकता है। टेक्नोलॉजी को छूकर भी वो समाज लेकिन अपना रंग नहीं बदलता। अमीर गरीब का अंतर , सरकार की नीतियाँ , चुनाव , आदि चीज़ों को भविष्य के समाज में खूबी से बुना है।
हर वर्ग के , हर उम्र के पाठकों को ये नया प्रयोग अनूठा लगेगा। कविता तो जीवन के हर कण और हर क्षण में शामिल है; उसे कवी तलाशता है कविता कवी को तलाशती है; पता नहीं।
कुछ चुनिंदा कवितायें आपके लिए –
१)
पृथ्वी से इंसान हटाओ ,
सूर्यमाला से ग्रह हटाओ ,
आकाशगंगा से सूर्यमाला हटाओ ,
और स्पेस से आकाशगंगा हटाओ
बचेकूचे प्लैनेट्स, कॉमेट्स भी
एक झाड़ू लेकर साफ़ कर दो ,
ब्लैक होल को भी एक बार
फ्लश कर दो।
देखो
अब तो कई खुदा दिखता है क्या ?
२)
सूना है –
और किसी सैय्यारे पर ना हवा है ,
ना कोई फ़िज़ा है।
हम किसे पुकारे तो
पास खड़ा शख्स भी
कुछ सुन नहीं सकता
आवाजों के पाँव नहीं है वहाँ …
हाल तो हमारे सैय्यारे का भी
कुछ ख़ास जुदा नहीं है
काफी तेज हवा है – फिजां है
पर आवाज़ें यहां भी कोई नहीं सुनता
शोर इतना है यहां की
कभी कभी खुद की आवाज़ भी सुनाई नहीं देती
कोई गर दिल की बात कहना चाहे
या कोई सुनना चाहे
तो जाए तो किस प्लेनेट पे जाये ?
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