
आजकल, जब पुस्तक प्रकाशन के लिए डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म और ई-बुक्स का चलन बढ़ गया है, तो भी बहुत से भारतीय लेखक अपनी किताबों को ऑफलाइन यानी बुक स्टोर्स और मार्केट्स में बेचना चाहते हैं। चाहे वह प्रमुख बुक स्टोर्स हो, मॉल्स में बुक डिस्प्ले हो, या स्थानीय किताबों की दुकानों में, ऑफलाइन पुस्तक डिस्ट्रीब्यूशन का आकर्षण कभी कम नहीं हुआ है। भारत में यह सपना किसी लेखक के लिए एक बड़ी उपलब्धि जैसा महसूस होता है, क्योंकि पुस्तक को बुक स्टोर्स में रखना, किताब की विजिबिलिटी और सामान्य बिक्री को बढ़ा सकता है।
लेकिन सवाल यह है: क्या वास्तव में ऑफ़लाइन पुस्तक वितरण सचमुच सस्ता और आसान है?
यह एक ऐसा सवाल है जो हर लेखक के मन में उठता है, खासकर तब जब वे अपनी किताब को प्रिंट कराने के बाद उसकी बिक्री के बारे में सोचते हैं। इस सवाल का सीधा जवाब देना आसान नहीं है, क्योंकि इसके पीछे एक संपूर्ण वितरण प्रणाली, संसाधन और बाजार की वास्तविकताएं छिपी होती हैं।
इस आलेख में हम इन्हीं जटिल पहलुओं को विस्तार से समझेंगे। लागत, चुनौतियाँ, जोखिम और वह कड़वी सच्चाई जो अक्सर लेखकों से छिपी रह जाती है या कई बार लेखक जानना नहीं चाहते हैं। तो आइए, विस्तार से जानते हैं कि ऑफलाइन बुक डिस्ट्रीब्यूशन का सच क्या है, और क्यों यह रास्ता हर लेखक के लिए आसान नहीं है।
भारी निवेश की आवश्यकता
ऑफलाइन डिस्ट्रीब्यूशन का मुख्य आकर्षण यह है कि किताब को सीधे पाठकों तक पहुँचाना। जबकि यह सिर्फ एक कल्पना की तरह है, लेकिन इसके पीछे जो खर्च और मेहनत है, वह लेखकों को अक्सर नहीं दिखाई देती। ऑफलाइन डिस्ट्रीब्यूशन के लिए एक बड़े नेटवर्क की आवश्यकता होती है, जिसमें मार्केटिंग, लॉजिस्टिक्स, और फील्ड सेल्स शामिल होते हैं। ऑफलाइन डिस्ट्रीब्यूशन के लिए समय और बड़े स्तर पर निवेश की आवश्यकता होती है। जो सेल्फ पब्लिशिंग कंपनियों के लिए असंभव है।
जानते हैं, इसमें क्या-क्या शामिल है?
फील्ड सेल्स टीम: बुक स्टोर्स में जाकर किताबों की डिस्प्ले, बिक्री को बढ़ावा देना, और नए स्टोर में किताबों को पेश करना एक विशेषज्ञ टीम की ज़रूरत होती है, जो मार्केट काे संभालती है। इस टीम का एक महत्वपूर्ण कार्य यह होता है कि वे प्रत्येक स्टोर पर जाकर किताबों के स्टॉक और डिस्प्ले को ट्रैक करें। इसके लिए सेल्फ पब्लिशिंग कंपनियाँ निवेश नहीं करती हैं, और न ही करेंगी, क्योंकि इसमें सफलता की कोई गारंटी नहीं हैं। हाँ, साथ ही सेल्फ पब्लिशिंग कंपनियों के पास इतनी बड़ी पूंजी नहीं होती है कि वे निवेश कर सकें।
एक अन्य कारण यह भी है कि यदि बड़ी सेल्फ पब्लिशिंग कंपनियाँ इन्वेस्टर्स के माध्यम से आगे बढ़ना चाहें तो इन्वेस्टर भी साफ-साफ मना कर देंगें, क्योंकि भारत में इस क्षेत्र में सफलता की गारंटी दे पाना मुश्किल है। इसका कारण यह है कि भारत में लेखक सस्ते से सस्ती पब्लिशिंग कॉस्ट के साथ ही रिर्टन में बहुत ज्यादा लाभ एवं कम समय में सफलता चाहते हैं। जबकि ट्रेडिशनल सेल्फ पब्लिशिंग कंपनियों को इस मुकाम तक पहुंचाने में उनकी कई पीढ़ियों का योगदान होता है। जिस कारण वे किसी भी नये लेखक को प्रकाशन का अवसर नहीं देते हैं, बल्कि सुप्रसिद्व एवं स्थापित लेखकों को ही प्रकाशित करते हैं।
लॉजिस्टिक्स और स्टॉकिंग: किताब प्रिन्ट होने के बाद उन्हें बुक स्टोर तक पहुंचाने, उनकी स्थिति को जांचने और यह सुनिश्चित करने के लिए अच्छे डिलीवरी नेटवर्क के साथ फील्ड स्टाफ की जरूरत होती है। यह सब एक सुव्यवस्थित इन्वेंट्री सिस्टम के तहत होता है। लॉजिस्टिक का खर्च और लाखों प्रतियों का स्टॉक मैनेज करने के लिए भी एक अच्छे फंड या निवेश की आवश्यकता होती है। लेकिन यहाँ पर ध्यान देने वाला बिंदु यह है कि ऑफलाइन डिस्ट्रीब्यूशन की शुरूवात मार्केट में उधार देकर ही होती है, जिस कारण सेल्फ पब्लिशिंग कंपनियाँ या बड़े बिजनेस हाउस इस तरह के जोखिम भरे निवेश से दूर रहना चाहते हैं।
प्रचार और विज्ञापन: बुक स्टोर्स में किताबें डिलिवर होने एवं डिस्प्ले करने के बाद, प्रचार और विज्ञापन की आवश्यकता होती है, ताकि किताब अधिक से अधिक पाठकों को आकर्षित कर सके। यह खर्च भी लेखक या प्रकाशक को उठाना होता है। सेल्फ पब्लिशिंग कंपनियाँ ये खर्च नहीं उठा सकती हैं, क्योंकि जैसा मैंने पहले बताया कि इसके लिए उनके पास पर्याप्त निवेश राशि न होना बड़ा कारण है। जबकि बड़ी सेल्फ पब्लिशिंग कंपनियाँ या बड़े बिजनेस हाउस हमेशा उस कार्य या बिजनेस में निवेश करना चाहते हैं, जिससे उन्हें लाभ हो।
आपको बता दें कि तमिलनाडु की एक नामी कंपनी जिसका मुख्य व्यवसाय क्षेत्र टेक्नोलॉजी और इलेक्ट्रिसिटी था, ने भी वर्ष 2021 में सेल्फ पब्लिशिंग क्षेत्र में निवेश किया था। यहाँ तक कि उन्होंने नोएडा में भी एक शानदार ऑफिस खोला था। उन्होंने अपनी पब्लिशिंग कंपनी के लिए बड़े निवेश के साथ काफी अच्छा प्रचार किया था, यहाँ तक कि काफी बड़ा स्टॉफ भी रखा था। लेकिन अफसोस यह रहा कि वह भी भारतीय लेखकों की मिथकों से भरी हुई आकाक्षाओं को पूरा नहीं कर सकी और उन्होंने लगभग तीन वर्षों के छोटे से अंतराल में ही पब्लिशिंग डिविजन को बंद कर दिया।
यह मेरे लिए भी काफी अचंभित करने वाला समाचार था, क्योंकि उनके पास लेखक डैशबोर्ड से लेकर एक लेखक को दी जाने वाली सभी सुविधाएं थी, जिसके लिए कम से कम पांच से दस लाख का खर्च होता है। हाँ, ये हो सकता है कि उनके पास स्वयं की डेवलेपर टीम हो, जो उनके लिए कार्य करती हो, लेकिन डेवलेपर टीम का खर्च भी प्रतिमाह लाखों में होता है। जबकि यह छोटे प्रकाशकों के लिए चुनौती भरा हो सकता है।
इसके अलावा, मेरे सामने ही 2017 से अब तक कई छोटे-बड़े सेल्फ पब्लिशिंग हाउस आए और कुछ समय बाद बंद हो गए। उनमें से एक महाराष्ट्र से मुम्बई का सेल्फ पब्लिशिंग हाउस भी था, जिसका प्रचार मैंने हर दिन और महीने के तीस दिन, लगभग दो वर्षों तक देखा, जो लगभग तीसरे वर्ष में बंद हो गई। उन्होंने तो अपनी वेबसाइट पर यह भी सूचना जारी की थी कि हमारी कंपनी लगातार नुकसान में जाने के कारण पब्लिशिंग बिजनेस को हमेशा के लिए बंद किया जा रहा है।
अनुमानित खर्च: ऑफलाइन डिस्ट्रीब्यूशन की कुल लागत आमतौर पर बहुत अधिक होती है, जो कम से कम लाखों रूपये का प्रतिमाह का निवेश मांगती है। यदि आप एक नये लेखक हैं, तो आपके पास ऐसे भारी खर्चों को वहन करने के लिए पर्याप्त संसाधन जुटाना असंभव है। किताब को ऑफलाइन डिस्ट्रीब्यूशन करना इतना आसान नहीं होता है, जितना प्रतीत होता है। मेरे एक जानकार हैं, जो पब्लिशिंग उद्योग में लगभग 25 वर्षों से हैं, जब मैं पब्लिशिंग क्षेत्र में नहीं था, तब उनसे मेरी बात होती थी, तो वे बताते थे कि वे शैक्षिक किताबों को लेकर पब्लिशिंग हाउस शुरू करना चाहते हैं, लेकिन कम से कम 50 लाख रूपये की पूंजी चाहिए, जिसके लिए उन्हें कोई पार्टनर या इन्वेस्टर नहीं मिल रहा है।
उन्होंने बताया कि शैक्षिक हो या साहित्यिक या अन्य विद्याएं, सबके लिए प्रकाशन क्षेत्र में लगभग एक वर्ष के लिए स्टॉक को मार्केट में बुक स्टोर के पास ब्लॉक करना पड़ता है, तब जाकर एक या दो वर्षो के बाद हिसाब होता है। कई बार कुछ दुकानदार या डिस्ट्रीब्यूटर कई वर्षों तक भुगतान नहीं करते हैं। जिनके लिए अलग से स्टॉफ रखना पड़ता है, जो उनके पास जाकर उन्हें याद दिलाता है, या तकादा करता है, क्योंकि फोन करने पर वे लोग फोन का जवाब नहीं देते हैं।
ये सिर्फ कुछ ही बिंदु हैं, जबकि ऐस कई कारण हैं, जिनके कारण कोई भी निवेशक या नया ट्रेडिशनल प्रकाशक कुछ समय बाद भारी नुकसान के साथ अपना प्रकाशन हाउस बंद कर देता है। लेकिन लेखकों की नजर से देखा जाए तो उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि उनकी किताब फ्री में प्रकाशित हो गई। हाँ, यदि किसी लेखक की रॉयल्टी नहीं मिल पाई है तो वह जरूर उसका दुष्प्रचार करेगा, लेकिन निवेशक या प्रकाशक की परेशानियाँ या बिजनेस में लाखों का नुकसान या प्रकाशक के द्वारा लेखक को मिली प्रसिद्वि उसके लिए कोई मायने नहीं रखती है। ये कोई बड़ी बात नहीं है, क्योंकि मैंने कुछ सफल लेखकों की जीवनी पढ़ी है, यह निष्कर्ष निकला कि यदि लेखक सफल होता है, या जिन प्रकाशकों के माध्यम से सफल हुए हैं, वे अपने पुराने प्रकाशक के पास कभी दोबारा नहीं गए, क्योंकि उनके लिए सिर्फ अपना लाभ सर्वोपरि होता है या वे सर्वप्रथम अपने आर्थिक लाभ को प्राथमिकता देते हैं। जो नई बात नहीं है, अपना लाभ देखना हमेशा से ही समाज की रीत रही है।
मैं अक्सर लेखकों से बात करता हूँ तो वे सबसे पहले कहते हैं कि आपके प्लान वास्तव में बहुत सस्ते हैं, जबकि दूसरे पब्लिशर के प्लान काफी महंगें हैं, लेकिन क्या आपके पास ऑफलाइन डिस्ट्रीब्यूशन की सुविधा है। जाहिर सी बात है कि मेरा पब्लिशिंग हाउस भी उन्ही सेल्फ पब्लिशिंग हाउस में है, जिसकी ऑफलाइन डिस्ट्रीब्यूशन करने की बात तो दूर है, सोचने भर की भी हैसियत नहीं है, इसलिए मैं साफ मना कर देता हूँ। जिसके बाद वे अफसोस जताते है और फोन काट देते है, और निकल पड़ते हैं अगले बेस्ट पब्लिशर की तलाश में, जो उनके लिए ऑफलाइन डिस्ट्रीब्यूशन की जरूरत को पूरा कर सके।
यदि लेखक अपने स्तर से ऑफलाइन डिस्ट्रीब्यूशन करे
ऑफलाइन डिस्ट्रीब्यूशन के लिए प्रकाशक से बोलना बहुत आसान है, लेकिन यदि आप धरातल पर आकर देखें तो आपको सच्चाई दिखेगी। घर में बैठकर लिख लो और उसके बाद ऑफलाइन डिस्ट्रीब्यूशन के लिए भारी पूंजी निवेश के साथ बड़ा जिगर चाहिए होता है। यदि सेल्फ पब्लिशिंग बिजनेस इतना लाभकारी होता तो बड़े-बड़े बिजनेस घराने इसमें भारी निवेश करते, क्योंकि आज के समय में बड़े बिजनेस घराने छोटे से लेकर बड़े बिजनेस में निवेश कर रहे हैं, ताकि वे लाभ प्राप्त कर सकें। लेकिन उन्हें पता है कि सेल्फ पब्लिशिंग या ट्रेडिशनल पब्लिशिंग में इतना लाभ नहीं है, जिससे वे सफल हो सकें, इसलिए वे इस क्षेत्र से दूर ही रहते हैं।
ऑफलाइन डिस्ट्रीब्यूशन केवल विज्ञापन और डिस्प्ले तक सीमित नहीं है, इसके साथ और भी खर्च जुड़े होते हैं, जिनका लेखक को कभी भी अंदाजा नहीं होता, क्योंकि वे सिर्फ लिखने तक ही सीमित रहते हैं। कई बार लेखक सच्चाई से रूबरू ही नहीं होना चाहते हैं और ऑफलाइन डिस्ट्रीब्यूशन वाला प्रकाशक की तलाश में रहते हैं।
उदाहरण के लिए:
लॉजिस्टिक्स खर्च: इस बारे में ऊपर बताया जा चुका है कि किताबों को अलग-अलग स्टोर्स तक पहुँचाने में परिवहन, डिलीवरी और इन्वेंट्री ट्रैकिंग की आवश्यकता होती है। यदि लेखक अपने स्तर से कर रहा है या प्रीमियम ऑफलाइन बुक स्टोर्स से डील तय हो गई है तो इन सबकी लागत लेखक को स्वयं ही उठानी पड़ती है।
मार्केटिंग खर्च: सबसे बड़ी बात यह है कि जब तक किताब के बारे में प्रचार नहीं किया जाता, तब तक बिक्री में वृद्धि नहीं होगी। बुक स्टोर्स और अन्य आउटलेट्स पर किताब का प्रचार करने के लिए अतिरिक्त विज्ञापन शुल्क देना पड़ता है, क्योंकि मेरा अनुभव यह कहता है कि प्रचार के बिना सिर्फ रोजमर्रा के सामानों को छोड़कर कुछ नहीं बिकता है। जो दिखता है, वही बिकता है, चाहे कबाड़ ही क्यों न हो। लेकिन यहाँ पर यह बात साफ शब्दों में बताना चाहता हूँ कि किताबों के बिकने की कोई गारंटी नहीं होती है, क्योंकि पाठक उसकी किताब पढ़ते हैं, जिसका प्रचार प्रतिदिन उन्हें दिख रहा है। मैं मानता हूँ कि मात्र एक या दो लाख रूपये का निवेश करना कोई समझदारी का काम नहीं है, क्योंकि ऐसे कई लेखक हैं जो इससे अधिक निवेश प्रमोशन में कर चुकें हैं, लेकिन उन्हें कोई लाभ नहीं मिल पाया है।
प्रोमोशनल डिस्काउंट: किताबों को बेचना और अधिक प्रतिस्पर्धी बनाना एक चुनौती भरा कार्य है। इसके लिए अक्सर बुक स्टोर्स को प्रोमोशनल डिस्काउंट देना पड़ता है, जिससे लेखक की कमाई पर असर पड़ता है, इसलिए प्रोमोशनल डिस्काउंट देना भी बहुत आसान नहीं है, इसके लिए लेखक को कम से कम हजारों प्रतियाँ प्रिन्ट करानी पड़ेगी, ताकि प्रति पुस्तक की कॉस्ट कम आए और पाठकों व बुक स्टोर्स को प्रोमोशनल डिस्काउंट दिया जा सके।
हाँ, यह भी ध्यान दें कि अगर आप बुक स्टोर को अच्छा डिस्काउंट नहीं देंगें तो वे आपकी किताब को रखने में कोई रूचि नहीं दिखाएंगें और पाठक को भी डिस्काउंट नहीं देगें तो वे भी खरीदने में कोई रूचि नहीं लेंगें। अब आप सोचेंगें कि डिस्काउंट भी दे ही देंगें, लेकिन इतना काफी नहीं है, आपकी किताब पाठक के लिए उपयोगी होनी चाहिए। तभी वे खरीदने में रूचि लेंगें।
मैंने अक्सर देखा है कि कई बार लेखक अपनी पसंद की विधा में किताब प्रकाशित करा लेते हैं और सोचते हैं कि सैंकड़ो प्रतियाँ बिक जाएं। जरूरी तो नहीं है कि जो आपको पसंद हो वो पाठक को भी पसंद आएगी। इस विषय पर मैंने अपनी किताब ‘बेस्ट सेलर लेखक कैसे बनें‘ में लिखा है कि क्या लिखें और कैसे लिखें। आप मेरी किताब को अमेजन से खरीद सकते हैं।
कुल मिलाकर, यदि ऑफलाइन पुस्तक डिस्ट्रीब्यूशन की इस प्रक्रिया में लेखक हिम्मत करके बड़ा निवेश कर लेता है और कम लाभ मिलता है या लाभ ही न मिले, तो इससे लेखक को निराशा हाथ लग सकती है। साथ ही बड़े निवेश के डूबने का झटका लेखक को हतोत्साहित भी कर सकता है।
अन्य विकल्प प्रीमियम बुक स्टोर्स में डिस्प्ले करना
वर्तमान में सेल्फ पब्लिशड लेखकों के पास प्रीमियम बुक स्टोर में अपनी किताबें डिस्प्ले करने का विकल्प मौजूद है। यदि लेखक चाहते हैं कि उनकी किताब प्रीमियम बुक स्टोर्स में डिस्प्ले हो जाए, तो यह विकल्प लेखकों को भारी भरकम निवेश और मेहनत से बचा सकता है। भारत में कुछ प्रीमियम बुक स्टोर्स जैसे Crossword, Landmark, WHSmith, और Oxford Bookstore शुल्क लेकर किताब को अपने स्टोर में डिस्प्ले करते हैं, और यहाँ पर किताब होना लेखक के लिए एक बड़ी उपलब्धि हो सकती है। लेकिन क्या यह सचमुच इतना आसान है? हाँ, यह आसान है, लेकिन यह सफलता की कोई गारंटी नहीं है।
इसमें क्या होता है खर्च?
वर्तमान समय में प्रीमियम बुक स्टोर्स में कुछ बड़े बिजनेस घराने निवेश कर रहे हैं, क्योंकि इसमें निवेश के डूबने का जोखिम कम है। इसके अर्न्तगत ये कंपनियाँ बड़े मेट्रो सिटी में अपने स्टोर्स खोल लेती हैं और नामी प्रकाशकों व उनके लेखकों की किताबों को अपने यहाँ डिस्प्ले करतीं हैं। वहीं, इसके अलावा साइड से अतिरिक्त लाभ कमाने के लिए सेल्फ पब्लिशिंग कंपनियों या लेखकों से शुल्क लेकर उनकी किताबों को भी अपने स्टोर में डिस्पले करते हैं। इन प्रीमियम बुक स्टोर्स में किताब की डिस्प्ले करने के लिए सभी कंपनियों का अलग-अलग शुल्क निर्धारित है। यह शुल्क ₹25,000 से ₹40,000 प्रति माह या उससे भी अधिक हो सकता है।
अक्सर हमारे प्रकाशन से प्रकाशित लेखकों द्वारा ऑफलाइन डिस्ट्रीब्यूशन के लिए बार-बार अनुरोध करने पर एक बार मैंने एक बड़े प्रीमियम बुक स्टोर से अपने प्रकाशन की पुस्तकों को डिस्पले करने के लिए पूछताछ की थी, तो उन्होंने मुझे बताया कि एक किताब के लिए डिस्पले शुल्क मात्र 30 हजार रूपये है, और यदि आप बिल्कुल फ्रंट में रखना चाहते हैं तो यह शुल्क 50 हजार रूपये प्रतिमाह होगा। उनका शुल्क जानकर मेरे पास जवाब देने के लिए कोई शब्द नहीं थे। उसके बाद से मैंने कभी इस विषय पर कभी ध्यान नहीं दिया। हाँ लेखकों के पूछने पर इतना जरूर कहा कि मेरे प्रकाशन की इतनी हैसियत नहीं है कि ऑफलाइन डिस्ट्रीब्यूशन कर सके, इसलिए मेरा प्रकाशन हाउस आपको यह सुविधा दे पाने में असमर्थ है, क्योंकि यह सोचने वाली बात है कि जहाँ लेखक पांच हजार रूपये के पब्लिशिंग पैकेज को ही बहुत महंगा कहकर फोन काट देते हैं, वे 30 हजार रूपये कहाँ से खर्च कर पाएंगें।
इसके अलावा प्रीमियम बुक स्टोर की डिस्पले पॉलिसी को अधिक जानिए, जो हमें ईमेल पर भेजा गया था। उन्होंने कहा कि इस शुल्क में बिक्री की कोई गारंटी नहीं होती है। यदि पुस्तक बिकती है तो बिक्री मूल्य का पचास प्रतिशत उनका बेचने कमीशन होगा, बाकी आपको दिया जाएगा। बुक स्टोर में किताब का नहीं होगा, बल्कि स्टॉक में रखी जाएगी, यदि ग्राहक आपकी किताब को नाम से मांगता है तो उसे दिखाई जाएगी। यदि आप फ्रंट में डिस्प्ले चाहते हैं, तो उसके चार्जेस आपको बता दिए गये हैं, लेकिन यदि एक भी किताब नहीं बिकती, तो कोई रिफंड नहीं होगा। साथ ही पुस्तकों को प्रिन्ट करके आप देंगें, कोरियर चार्ज भी आप देंगें और नहीं बिकी तो उन्हें वापस मंगाने का खर्च भी आप ही करेंगें। अन्यथा निर्धारित समय सीमा के भीतर वापस न मंगाने पर हम उन्हें नष्ट कर देंगें और अपने खर्चे पर वापिस करने का कोई प्रावधान नहीं है।
इसके अलावा, उन्होंने यह भी बताया कि यदि 2-3 महीनों तक अच्छी संख्या में आपकी किताब नहीं बिकती है, तो बुक स्टोर उस किताब या लेखक को ब्लॉक कर सकता है, ताकि उनके स्टोर की छवि खराब न हो। इसके लिए उन्होंने हिदायत दी कि आपको या आपके लेखक को इस दौरान लगातार प्रमोशन या मार्केटिंग करने की आवश्यकता है। प्रमोशन या मार्केटिंग एक्टिविटी नहीं करते हैं तो इससे हमारे स्टोर में ऐसे ही पड़ी रहेगी। आप ही सोचिए, क्या ऐसी परिस्थिति में लेखक को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है या नहीं।
निवेश का नुकसान: साफ तौर पर नजर आ रहा है कि यदि लेखक अपनी ओर से कोई प्रमोशन न करे तो प्रीमियम बुक स्टोर्स में डिस्पले के लिए लेखक के द्वारा किया गया भारी निवेश बर्बाद होने की पूरी संभावना है, क्योंकि बिक्री की कोई गारंटी नहीं होती है। इस तरह से लगभग एक किताब पर फ्रंट में डिस्पले एवं प्रमोशन के लिए लेखक को लाखों रूपये खर्च करने की आवश्यकता होगी।
विफलता का खतरा
प्रीमियम बुक स्टोर्स हो या साधारण बुक स्टोर्स, ऑफलाइन डिस्ट्रीब्यूशन के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि किताब की बिक्री की कोई गारंटी नहीं होती है। बुक स्टोर में किताब होने का मतलब यह नहीं है कि किताब बिकेगी, क्योंकि पाठक के साथ पढ़ने या खरीदने के लिए जबरदस्ती नहीं की जा सकती है। पाठक खर्च कर रहा है तो जो उसका मन पढ़ने का है, वो वही खरीदेगा।
अगर वह बिक नहीं पाई तो कई बुक स्टोर्स 3 महीने के बाद किताबें हटाने का निर्णय ले लेते हैं। इससे लेखक को नुकसान होता है, और भविष्य में उसकी किताब को स्टोर में रखने में भी परेशानी हो सकती है।
सस्ते पब्लिशिंग प्लान के साथ ऑफलाइन डिस्ट्रीब्यूशन असंभव
अब तक मैं कई लेखकों से रूबरू हुआ हूँ, जो अक्सर सस्ते सेल्फ पब्लिशिंग प्लान के साथ ऑफलाइन डिस्ट्रीब्यूशन की मांग करते हैं, जो पूरी तरह से काल्पनिक है, लेकिन फिर भी लेखक ऑफलाइन डिस्ट्रीब्यूशन सुविधा के लिए प्रयासरत हैं। जैसा कि मैंने पहले बताया कि कम लागत में डिस्ट्रीब्यूशन संभव नहीं है, क्योंकि इसके लिए समय, निवेश और संसाधन की आवश्यकता होती है। जो कोई सेल्फ पब्लिशिंग कंपनी नहीं करती है, क्योंकि मार्केट के बारे में पता होते हुए भी इतना बड़ा निवेश करना आसान नहीं है। हाँ, प्रीमियम बुक स्टोर्स में आप डिस्प्ले कर सकते हैं, लेकिन आपको उसके जाेखिम और निवेश के लिए तैयार रहना होगा।
निष्कर्ष: ऑफलाइन डिस्ट्रीब्यूशन के मायाजाल से बाहर निकलना ही बेहतर है
अंत में यह कहूंगा कि ऑफलाइन डिस्ट्रीब्यूशन लेखक के लिए एक आकर्षक विचार हो सकता है, लेकिन इसमें जिम्मेदारी, निवेश और जोखिम का एक बड़ा हिस्सा होता है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। अगर आप एक लेखक हैं, तो आपको यह जरूर जानना चाहिए कि सिर्फ किताब लिखना ही नहीं, बल्कि उसे बेचना भी एक अलग कला है। जिसके लिए आपको जमीनी स्तर पर मेहनत करने की आवश्यकता है। यदि आप सिर्फ प्रकाशक के भरोसे बैठे हुए हैं तो आपकी किताब की बिक्री की कोई संभावना नहीं है।
अगर आप अपनी किताब को सफलतापूर्वक ऑफलाइन बेचना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको पहले से ही स्मार्ट मार्केटिंग व प्रमोशन रणनीति और निवेश की पूरी योजना बनानी होगी। आखिरकार, ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीके से एक लेखक को अपने ब्रांड और किताब का प्रचार करना चाहिए, ताकि वह समझदारी से सफलता पा सके और लंबें समय के लिए स्वयं को एक स्थापित ब्रांड बना सकें।
लेखक : राजेन्द्र सिंह बिष्ट
(लेखक प्रकाशन व्यवसाय से जुड़े हुए हैं और इससे पूर्व लगभग दस वर्ष तक पत्रकारिता में रह चुकें है।)
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